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सच में तू सम्पत्ति किसी की

सच में तू सम्पत्ति किसी की
सच में रूप अनोखा ।
मान रहा है अपना कोई 
पागल पंथी देखा ।।
जबकि तू अत्यन्त कठिन हो
समझा पडा खजाना ।
दिन मे कोई देख रहा है
सपना बडा सुहाना ।।
तू माया की भरी तिजोरी
वह पवित्र दर्पण सा ।
जो दिखती वह नही है भीतर
फिर करता अर्पण सा ।।
नीलकण्ठ विष पीने वाले
तुमने जगत बनाया ।
कही हसी तो कही है ऑसू
कही बैठ समझाया ।।
डॉ दीनानाथ मिश्र

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6 Comments

Renu

29-Mar-2023 08:15 PM

👍👍🌺

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Ajay Tiwari

29-Mar-2023 08:15 AM

Very nice

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Abhinav ji

29-Mar-2023 08:15 AM

Very nice

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